राधा कृष्ण हम हैं हम।
वृन्दावन, चरवाह महल में
हम दोनों ही थे, याद है मुझे
राधा :
राधा, राधा बुलाने तक तुम
उम्मीद किया है मैंने हरे कृष्ण
कृष्ण :
राधा, राधा, राधा....
राधा :
कृष्ण, कृष्ण, कृष्ण ....
कृष्ण :
पहले टिम टिम चमके आँखें
बुझा दिया है क्या ?
नारंगी रंग होंठों में शब्दों को
छुपा लिया है क्या ?
राधा :
बहुत समय के बाद ,सोने का सूरज
देखा है मुझे
अंदर में हँसी , जो मेरे दिल में छाया
आँखों से देखा है वो
कृष्ण :
फूल खिलते सुगंध देते
इस प्रेम कहानी को ले चलते
दुनिया वालों को इस प्रेम की
अर्थ समझाते
राधा :
पूजा करूँगी मैं इसे
तेरे मेरे प्रेम की ओर
बार बार जन्मे लेते
तेरे संग ही रहते ।।।
दुल्कान्ति समरसिंह।
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