शादी।


                         मेरे पिताजी एक स्कूल के प्रधान शिक्षक थे।  मेरी माँ भी एक शिक्षिका थी, और मैं भी।  
अब मैं पैंसठ साल की हूँ ,और तब बत्तीस साल की थी। उस समय तक मेरे माता - पिता मेरे लिए लगभग चौदह शादी प्रस्ताव ले आये थे। 

                           मेरे सभी सपने सच करते एक दिन  वह एक विवाह स्थिर करनेवाले के द्वारा मेरे पास आया है। शादी भी हो गई। 

शादी के बाद, दूसरे दिन से हम दोनों उसके नये घर में रहने के लिए चले गए। 

जब सारे रिश्ते वापस जा गए, वह मेरे पास आ कर  मुझे यह कहते हुए उकसाया कि, 
" मुझे परवाह नहीं है कि तुम कौन हो। तू जा। हमेशा रसोई में रहो। मेरे परिवार में सदस्यों , दोस्तों और ग्रामीणों के सामने मुंह खोलना मना है। उनके सामने आना भी मना है। तुम हमारे परिवार की सदस्य नहीं हो। मेरे परिवार में प्रत्येक बच्चे का सम्मान करो। याद रखो कि, तुम मेरे परिवार में सेविका हो ।"

मेरे पति ने मेरे साथ खाना नहीं खाया,  मेरे पास नहीं बैठा और मेरी परवाह नहीं की। केवल सोने के लिए वह मेरे पास आया है। 

उस दिन से आज तक मैं अकेले ही रहती हूँ। आज भी ऐसा है और मैं अकेले ही पैदा हुई थी , अकेले ही मर जाऊँगी । 

जन्म से मृत्यु तक वे सब किसलिए हुई थी ।।। 

- दुल्कान्ति समरसिंह। -



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