गुरु जी।

कविता थी मेरे अंदर में 
    खोज रही थी शब्दों को मैं 
  भावों के अथाह सागर में 
      चिंतन करते सोच रही थी मैं 

      तभी दिव्य अनुग्रह को पाया 
     काव्य जगत में लेकर आया 
      जीवन में सुरभित पुष्प खिले 
      फिर गुरु अचानक मुझे मिले 

     भारत देश में जन्म से पहले 
          सत्य है उन तो स्वर्ग से निकाले 
  कौशल्या अंदर में सफले 
    ऐसा आदरणीय गुरु मिले  
                                    - दुल्कान्ति समरसिंह -

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