हे मुकद्दर।।



जवानी का स्तम्भ के 
पीछे छिपा के 
क्यों मज़ा किये हो तुम 
ज़िन्दगी की शाम में 
मुझे दे रहे चैन 
स्नेह गाने को लिखा देने में 
देर हो कर तुम 
हे मुकद्दर तेरे गलत पर 
क्या करूंगी मैं  ।

यदि सूखे के बाद 
बारिश हो तो 
धरती पर गंध ताज़ा है 
बडे बारिश के बाद चंद्रमा 
  ज्यादा चमकता है  ।।

खतरनाक तरंग के बाद 
नीले समंदर निश्छल है 
प्रकृति के अनुसार स्नेह से 
       समय बाधा  न करता है  ।।।
                                 (दुल्कान्ति समरसिंह) 

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