इश्क़ ।।
मेरे प्यार में अंकुर बढ़ कर
हवा में झूल रहे थे
दिल में इच्छा को छू कर के हवा
बाहर निकल गई - और
फिर बादल से गले लगा कर
धरती पे गिर, सो गई
समय का रेत टिब्बे के बीच में
नदिया के रूप में बदल गयी - और
सूखने से पहले दौड दौड के
प्यार का अर्थ समुद्र में छुपाई
अब मेरे सीने में नहीं है प्यार
देखती हूँ खाली गगन की ओर
जो अनुमति ढ़ेर दुनिया से पाए
साझा करें इसे सब प्रेमियों को
जो इश्क़ मुझ पर अनिच्छुक तो
वो इश्क मुझे नहीं चाहिए
आज , कल और कल से आगे भी
मेरे लिए इश्क़ नहीं चाहिए ।।।
दुल्कान्ति समरसिंह
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